इस संपूर्ण जड एवं चेतन संसार के कण कण में ईश्वर व्याप्त हैं| हिन्दू धर्म ने इस मूल तत्व को आदि काल में ही जान लिया था| वेद एवं पूराण ३३ करोड देवी देवतों का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं जो कि मानव, पशू, नरपशु, ग्रह, नक्षत्र, वनस्पति तथा जलाशय इत्यादि हर रूप में व्याप्त हैं| पर इनके शिखर पर हैं त्रिदेव … ब्रह्मा, विष्णु एवं सदाशिव| इनमे शापित होने के कारण ब्रह्मा की पुजा नहीं होती तथा जगत में विष्णु तथा सदाशिव ही पूजे जाते हैं|
विष्णु के भक्त वैष्णव कहलाते हैं तथा शिव भक्त शैव्य | पर वास्तव में अन्य कुछ धर्म एंव समुदाय के विपरीत वैष्णव तथा शैव्य हिन्दू धर्म में संघर्ष का कारण नहीं होते| वस्तुतः शैव्य विष्णू को भी पुजते हैं तथा वैष्णव शिव को भी पूजते हैं| तो वैष्णव तथा शैव्य सिर्फ अपने प्रमूख ईष्ट की मान्यता में एक दूसरे से अलग हैं| वैष्णव भगवान विष्णु को सव देवों में श्रेष्ठ मानता है तथा उन्हे त्रिदेवों से उपर परमेश्वर मानता है, तो शैव्य देवाधिदेव सर्वेश्वर शिव को परमेश्वर जानता है| यह आदि काल से चली आ रही परंपरा है| स्वंय वेद एवं पूराण अनेक उदाहरण प्रस्तूत करते हैं जिसमे शिव तथा विष्णु एक दूसरे अपना ही स्वरूप तथा परस्पर आदर्श बतलाते हैं|
पर विघटन प्रकृति का नियम है| वेदोत्तर काल में इस मान्यता में भी अंतर आया| और शैव्य एंव वैष्णव परंपरा का एक कट्टर स्वरूप सामने आया … “वीर शैव्य” तथा “वीर वैष्णव”| वीर वैष्णव का अधिक समय शिव तथा शैव्यों के द्वेष में ही बीतता है| वे शैव्यों के साथ संपर्क नहीं बढाते, वे शिव को नहीं पूजते, यहां तक की वे कभी कभी तो वे शैव्यों से जल भी ग्रहण नहीं करते| ठीक उसी प्रकार वीर शैव्य विष्णु तथा वैष्णवों से द्वेष को अपना परम कर्तव्य जानते हैं| वास्तव में ये शैव्य तथा वैष्णव न होकर “वीर” मात्र रह जाते हैं तथा एक दूसरे के विरोधी होने के बाद भी एक ही परंपरा का अनुसरण करते हैं| ये ज्ञान शुन्य होते हैं तथा अपने ही इष्ट के मूल रूप को नहीं जान पाते हैं| संपूर्ण जीवन साधना के बाद भी इन्हे दिव्य ज्ञान प्राप्त नहीं होता तथा इनकी द्वेष भावना बहुदा इनके ही नाश का कारण सिद्ध होती है| वास्तव में ये अपने इष्ट को प्रसन्न करने की अपेक्षा उन्हे भी अप्रसन्न कर देते हैं|
प्रजापती दक्ष का शिव विरोधी होने के कारण सर्वनाश हूआ, यद्यपि वे विष्णू भगवान की शरण में था| ठीक उसी प्रकार परम शिव भक्त होने के बाद भी ॠषि कागभूषंडी को अपने ही इष्ट का क्रोधभाजन बनना पडा तथा उनकी सिद्धियां नष्ट हूईं| कारण उन्होंने भगवान विष्णू के अवतार श्री राम का अनादर किया तथा तथा अपने तत्वज्ञानी गूरू लोमेश को वैष्णव जान उनकी अवहेलना की| वास्तव में लोमेश जैसे ज्ञानी ही परंज्ञान के अधिकारी होते हैं|
यथार्थ में ईश्वर एक हैं| वही परम कल्यानकारी तथा सर्वसमुद्भवकारण हैं| शिव का अर्थ होता है कल्यान| अतः जो कल्यानकारी है वही शिव हैं, उही परमात्मा हैं| परमात्मा का कोई स्वरूप नहीं होता| वे शुन्य सामान हैं| रूद्र का अर्थ होता है शुन्य, स्वरूप का ना होना| अतः रूद्र ही परमेश्वर हैं| निराकार परमेश्वर समय, काल तथा कारण के अनुसार अपना स्वरूप ग्रहण करते हैं|
शिवपूराण के अनुसार शिव जी ने ही सृष्टी के संपादन के लिए स्वंय से शक्ति को पृथक किया तथा शिव एवं शक्ति के एका से का विष्णू स्वरूप धारण हूआ| विष्णू से ब्रह्मा की उत्पत्ती हूई| ब्रह्मा ने सृजन, विष्णु ने सुपालन का कार्यभार ग्रहण किया| फिर सृष्टी के पूनरसृजन के हेतू विलय की आवश्यकता होने पर शिव ने ही महादेव रूप धारण कर विलय का कार्य अपने हाथों में लिया|
विष्णुपूराण के अनुसार परमेश्वर ही ब्रह्मा बन कर सृष्टी की रचना करते हैं, वे ही विष्णू बन कर सृष्टी का सुपालन करते हैं, तथा आयू के शेष हो जाने पर वे ही सदाशिव बन कर संहार करते हैं| वास्तव में वे एक ही हैं तथा ये विभिन्न नाम किसी व्यक्ति सामान देवों के नही वरण उन पदों तथा उपाद्धीयों के हैं जिन्हे धारण करण ईश्वर अपना कार्य कर रहे होते हैं| यह ठीक उसी प्रकार है जैसे हम एक हैं पर कोई हमें पूत्र जानता है तो कोई पिता, कोई शिष्य जानता है तो कोई गूरु, तथा हम ही किसी के लिए मित्र होते हैं, किसी के लिए शत्रू | और अनेकों के लिए तो हम कूछ होते भी नहीं| पर इन सब के मध्य हम एक ही होते हैं|
तो फिर विवाद कैसा? कौन ब्रह्मा, विष्णु, महेश? कौन शिव, कौन शक्ति? जब वे एक ही हैं तो क्या अंतर पडता है यदि कोई उन्हे विष्णु के नाम से जाने तो कोई शिव के नाम से जाने तथा कोई शक्ति के नाम से?
ईश्वर एक हैं| वे तीन त्रिदेवों अथवा ३३ करोड देवताओं में ही नहीं, अपितू संपूर्ण सृष्टी के कण कण में व्याप्त हैं| वे हमारे नश्वर शरीर के अन्दर की आत्मा हैं| वे हमारे सदविचार हैं|
ब्रह्मा कर्ता हैं, विष्णू कार्य तथा कार्यफल हैं, शिव कारण हैं| त्रिदेव एक वृक्ष के सामन हैं| ब्रह्म उस वृक्ष के तना हैं, विष्णु उस वृक्ष के विस्तार है, डालिया, पत्ते, पूष्प तथा फल सामान हैं| सदाशिव उस वृक्ष के जड हैं|
शिव जी की आरती इसी तत्व को संबोधित है| वास्तव में ये त्रिगूण शिव जी की आरती है जिसमे स्पष्ट शब्दों में उलेखित है …
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव जानत अविवेका|
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका||
shiv ji kaun hai ,enhone kha se jnm liya hai
shiv ke bare me mujhe kuchh btao
mai shiv je ke drshan ka pyash hoo
mujhe shiv bhola raha nhi jata
shiv kha milega aur mai kya kru
pleas mujhe gyan do
Sir,
I am highly surprised to find your valuable sight
shiv
Can me send me the story in which conditions The King of Lanka Ravana Rachit his Shiv Tandav Stotra.
jay “shri”
me vaishnav hu…matlab me “Ramanuj” samprada se vaushanv hu.. par me shv ko bhi manta hu..becoz “mahabharat ke war me” bhagwan shrukrushna ne vishwaroop dikhakar yahu bbataya he ki me ek hi hu aur anek bhi….
aapka lekh muje bahut prabhavit kiya…thanks.
me pehle sabhi devo ki puja karta tha…bt ab me sirf shrikrishna ko hi sabkuch manta hu..
thanks for ur post….
जय “श्री”
मैं वैष्ण्व हूँ … मतलब मैं “रामानुज” सम्प्रादाय से वैष्ण्व हूँ … पर मैं शिव को भी मानता हूँ । क्योंकि महाभारत के यूद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने विश्वरूप दिखा कर बतलाया कि “मैं एक ही हूँ और अनेक भी” ।
आपके लेख ने मुझे बहूत प्रभावित किया … धन्यवाद ॥
मैं पहले सभी देवों की पूजा करता था … पर अब मैं सिर्फ श्री कृष्ण को ही सब कुच्छ मानता हूँ ।
आपके लेख के लिय पुनः धन्यवाद ।
OM JAI SHIV SHANKAR.
thanks for lekh.
jay shiv shankar, aapki side shivmay hai aapke lekh shivarpit hain. aap badhai ke patra hain. shiv kripa aap par hai…………
Ye site bahut acchi hai… Kaafi kuch Shivji k baare main jankari prapt ho rahi hai. Aur bhakti badte hi jaa rahi hai.. Bhagwaan k prati….
Main Shivji k Darshan Ki ichaa rakhta hun.. Koi aisa strot yaa mantra jisse Shivji k satyswarup darshan prapt ho sake.
SHIV STROT KA ITNA BADA KHAZANA MAINE AAJ TAK NAHI PAYA.
YOU HAVE DONE A GREAT WORK TO ALL BHAKTS WHO ARE TAKING ENJOY WITH LORD SHIVA BHAKTI.
I REQUEST YOU TO PLEASE ADD ORE STUTI IN THIS PORTAL LIKE
“PRABHU PRAN NATHAM”
THANKS FOR THE ALL STUTI
JAI SHIV SHANKER
HAR…HAR….MAHADEV