महाशिवरात्री – शिकारी की कथा

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महाशिवरात्री के बारे में प्रचलित अनेको प्रसंगों में एक प्रसंग है कि किस प्रकार एक शिकारी नें अनजाने में शिवरात्री के अवसर पर शिवजी की पूजा सम्पन्न कर ली तथा उसके फलस्वरूप अगले जन्म में राज पद पाया | क्या भोलेनाथ इतने भोले हैं कि अनभिज्ञतावश किए पूजे से प्रसन्न हो जाते हैं तथा वरदान दे देते हैं? क्या उनके लिए पूजन विधि का इतना महत्त्व है कि अनजाने में सम्पन्न विधि भी उन्हें प्रभावित कर जाता है? तो फिर उनका क्या जो महाशिवरात्री के अवसर पर ध्यान पूर्वक पूजन करते हैं? क्या वो भी राजपद को प्राप्त करते हैं? आइये कथा का पुनः विश्लेष्ण करते हैं … (English Version Here)

कथा सारांश में कुछ इस प्रकार से है –

maha-shivaratri
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एक समय एक शिकारी अपने परिवार के संग रहा करता था | उसपर एक साहूकार का काफी कर्ज था जो कि वो वापस नहीं कर पा रहा था | तंग आकर शिकारी ने उसे बंदी बना लिया | बंदी गृह एक शिव मंदीर के समीप स्थित था तथा वो एक महाशिवरात्री का अवसर था | बंदी गृह में पड़े-पड़े उसने मंदीर में हो रहे शिव कथा के प्रवचन को सुना | उसके पश्चाय्त उसने साहूकार से विनती की तथा शीघ्र ही कर्ज पूरा करने का आश्वासन दे स्वयं के लिए मुक्ति प्राप्त किया |

फिर शिकारी धन प्राप्ति हेतु शिकार के लिए वन की और चला गया | संयोगवश उसे कोई भी शिकार नहीं मिला और रात्री हो चली | अन्धकार में डर कर वो एक व्रक्ष के ऊपर बैठ कर रात्री समापन का इन्द्जार करने लगा | शायद रात्री विचरण करते को पशु भी मिल जाए | वो भूख एवं भविष्य की परेशानियों से व्याकुल था | उसकी अश्रुधार बह कर नीचे गिर रही थी| इतने में उसे एक हिरनी दिखाई दे जाती है | वो अभी धनुष शाध ही रहा होता है कि हिरनी उससे विनती करती है किए शिकारी उसे तत्काल न मारे | उसके छोटे बच्चे हैं एवं पति है जो उसका इन्तजार कर रहीं हैं | वो एक बार उनसे मिल कर विदा लेना चाहती है तदुपरांत वो स्वयं शिकारी के पास वापस आ जाएगी | शिकारी ने उसे जाने दिया | एन्य आखेट के इंतजार में वो वृक्ष पर बैठा बैठा अनजाने में वृक्ष की पत्तियों को तोड़ता जा रहा था जो निचे भूमि की और गिर रहे थे | संयोग से उसे एक हिरन आता दिखाई पडा| उसने भी शिकारी से कुछ समय माँगा ताकि वो अपने परिवार से विदा ले सके | शिकारी ने उसे भी जाने दिया | प्रातः काल एक अद्भुत घटना घटी | हिरन की जोड़े ने अपने वचन के पूर्ति हेतु स्वयं को शिकारी के समक्ष प्रस्तुत कर दिया | उनके सत्याचार्ण से द्रविड़ हो शिकारी ने उन्हें जीवनदान दिया तथा रिक्त हाँथ ले घर के लिए प्रस्थान किया |

शिकारी इस बात से अनजान था कि जिस व्रक्ष पर उसने सरन ली थी उसके नीचे ही शिवलिंग स्थापित थी, जो पत्ते उसने व्रक्ष से तोड़ कर नीचे गिराए थे वो विल्व पत्र थी था शिवलिंग पर अर्पित हुए थे | उसके अश्रु से शिवलिंग का जलाभिषेक भी संपन्न हो गया | प्रवचन तो उसने प्रातः ही बंदी गृह में सुन लिए था | जंगल में उसने बिना कुछ ग्रहण किए रात्री जागरण भी कर लिए था | इस प्रका अनजाने में ही उसने शिवलिंग की सम्पूर्ण विधि पुरी कर ली | उसके फलस्वरूप अगले जन्म में उसने इक्ष्वाकु वंश में राज चित्र्भाणु के नाम से जन्म प्राप्त किया |

शिक्षा ??? क्या उसके उत्थान का कारण अनजाने में किया शिवपूजन था ? निश्चित ही | क्या कथा सुनना? विल्वपत्र का अर्पण? जलाभिषेक? रात्री जागरण? निराहार रहना? क्या शिव जी का भोलेनाथ होना? शायद नहीं | शिव जगत गुरू हैं | वो पाखंड से प्रभावित होने वाले नहीं | अन्यथा उनके पूजन में धतूरे एवं विल्वपत्र के स्थान में शुगंधित पुष्प एवं मिस्ठान का महत्व अधिक अगर एक अनजाने में किया पूजन राजपद प्राप्त करवा सकता है तो ध्यानपूर्वक सम्पन्न पूजन विधि से क्या कुछ संभव नहीं? फिर क्यों हर कोई राजपद प्राप्त नहीं कर लेता?

तो फिर शिकारी तो राजपद क्यों मिला इसी कौन सी शिव पूजा उसने की थी?

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम् .. ४..
(शिव मानस पूजा)

अर्थात हे शम्भों ! आप मेरी आत्मा हैं, माँ भवानी मेरी बुद्धी हैं, मेरी इन्द्रियाँ आपके गण हैं एवं मेरा शरीर आपका गृह है। सम्पुर्ण विषय-भोग की रचना आपकी ही पूजा है। मेरे निद्रा की स्थिति समाधि स्थिति है, मेरा चलना आपकी ही परिक्रमा है, मेरे शब्द आपके ही स्तोत्र हैं। वास्त्व में मैं जो भी करता हूँ वह सब आपकी आराधना ही है।

जिन शिव जी के लिए आपके कर्म ही उनकी पूजा है, उनके लिए एक करुणामय शिकारी के अश्रु निश्चित ही जलाभिषेक सामान होंगे| उसका निराहार होने के प्श्चाय्त भी मृग जोड़ो पर उपकार करना शिवपूजन ही तो था | वो भूखा था, ऋण में डूबा था | मृग का शिकार उसके दुखों को कम करने में सहायक हो सकता था | पर उसने करुना का प्रदर्शन करते हुए उन्हें जाने दिया | उसे ज्ञात था कि मृग वापस न भी आ सकते हैं | फिर जब वे वापस आ गये तो एक बार फिर पर कल्याण के लिए उसने उन्हें जीवनदान दिया| शिव का अर्थ ही होता है “कल्याण” | यह करुना की अवस्था नीलकंठ भगवान को प्रिय है – ये शिव पथ है और यही शिवपूजन भी – जबभी ये अवस्था आ जाए वो क्षण महाशिवरात्री का पर्व ही होता है| अतः शिवरात्री के कई कथाएँ प्रचलित हैं |

महाशिवरात्री के पर्व पर ही शिव के आनन्द ताडंव द्वारा सृष्टी कि उत्पत्ति हुई थी, इसी पावन पर्व पे शिव ने ब्रह्मा विष्णु को परम लिंग हेतु दर्शन एवं ज्ञान प्रदान किया था | इसी पावन पर्व पर वो संसार के हित हेतु नीलकंठ हुए एवं इसी पवन पर्व पर शिव शक्ति का एका भी हुआ | क्या ये संयोग है अथवा दंतकथा ? दोने ही नहीं | जब भी संसार के लिए कोई कल्याणकारी क्षण प्रस्तुत होता है वही महाशिवरात्री का पर्व होता है – शिव से संसार के एका का पर्व जिसे हम वर्ष में एक वार महाशिवरात्री एक नाम से मनाते हैं|

तो फिर क्या पुंजन का कोई महत्व नहीं है? क्या शिकारी के कथा में शिवलिंग का कोई महत्व नहीं है? निश्चय ही है | वो शिवलिंग का ही तो पुन्य प्रताप था की शिकारी की करुणा जागृत हुई | निश्चय ही –

यत्र तत्र स्थितो देवः सर्व व्यापि महेश्वरः

4 thoughts on “महाशिवरात्री – शिकारी की कथा

  1. Dear, Sir,

    Please add button about us, feed back & suggestions & Author’s mail id.

  2. Dear Bhakto,

    This is a great & true story.
    this story can be founded in Shiv Puran.

    Mishra Sir,

    Thanks for giving & spreading “Shiv Gyan”

  3. Aadarniye mishra ji pranam
    Aapke dwara kiye gaye shiv mahima k gungaan se paripurn in kathao ka laab bakton ko milta rahe. Aapko koti koti saadhuwaad.

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